कपास की खेती: भारत में कपास (Cotton) को “सफेद सोना” कहा जाता है, क्योंकि यह किसानों के लिए आमदनी का एक अहम जरिया है। देश के कई राज्यों—जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, और पंजाब—में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। कपास की अच्छी उपज पाने के लिए उन्नत तकनीकों, सही जल प्रबंधन और कीट नियंत्रण पर ध्यान देना जरूरी है।
इस लेख में हम आपको कपास की उन्नत खेती से जुड़ी हर अहम जानकारी देंगे, जैसे—उपयुक्त जलवायु, मिट्टी का चयन, बीज का चुनाव, सिंचाई व्यवस्था, कीट व रोग प्रबंधन और कटाई की विधि।
1. कपास के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान
कपास की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। इसके लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियाँ आवश्यक हैं:
- तापमान: 21°C से 30°C के बीच आदर्श होता है।
- बारिश: 600 से 1200 मिमी वार्षिक वर्षा पर्याप्त मानी जाती है।
- धूप: फसल को बढ़ने के लिए भरपूर धूप चाहिए होती है।
जिन क्षेत्रों में अधिक बारिश या ठंड होती है, वहां कपास की खेती करना मुश्किल हो सकता है।
2. उपयुक्त मिट्टी का चयन
कपास की खेती के लिए निम्नलिखित प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है:
- काली मिट्टी (रेगुर): अधिक उपजाऊ और जलधारण क्षमता वाली होती है।
- दोमट मिट्टी: इसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होती है।
- pH मान: 6 से 8.5 के बीच होना चाहिए।
यदि मिट्टी में पानी रुकता है, तो जड़ सड़ने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे खेतों की गहरी जुताई और जल निकासी व्यवस्था बहुत जरूरी है।

3. बीज का चयन और बुवाई का समय
सफल कपास खेती की शुरुआत बीज से होती है। आजकल Bt कपास की मांग अधिक है क्योंकि यह कीट प्रतिरोधी होता है।
प्रमुख बीज किस्में:
- Bt कपास (जैसे—RCH 134, JKCH 1947, NCS 855)
- गैर-Bt किस्में (जैसे—नरमा, देशी किस्में)
बुवाई का सही समय:
- उत्तर भारत: अप्रैल से जून
- दक्षिण भारत: जून से जुलाई
- कृषि विस्तार केंद्र की सलाह: अपने क्षेत्र के अनुसार नजदीकी कृषि अधिकारी से संपर्क करें।
बुवाई विधि:
- कतार से कतार की दूरी: 90 से 120 सेमी
- पौधे से पौधे की दूरी: 30 से 45 सेमी
- प्रति एकड़ बीज मात्रा: 1.5 से 2.0 किलोग्राम
बीज को फफूंदी नाशक से उपचारित करना जरूरी होता है जिससे फसल शुरुआत से ही सुरक्षित रहे।
4. खेत की तैयारी
- खेत को गहराई से जोतें ताकि जड़ों को विकास के लिए पर्याप्त स्थान मिले।
- हरी खाद (जैसे—ढैंचा) का प्रयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए करें।
- खेत समतल और जल निकासी युक्त होना चाहिए।
5. उर्वरक और पोषण प्रबंधन
कपास एक दीर्घकालिक फसल है, जिसमें अधिक पोषक तत्वों की जरूरत होती है।
उर्वरक की मात्रा (प्रति एकड़):
- नाइट्रोजन (N): 60-80 किलो
- फॉस्फोरस (P): 30-40 किलो
- पोटाश (K): 20-30 किलो
सुझाव:
- खाद को 2-3 बार में बांटकर देना चाहिए।
- गोबर की खाद और जैविक खाद का उपयोग भी लाभदायक होता है।

6. सिंचाई प्रबंधन
कपास की सिंचाई योजना इस प्रकार रखें:
- पहली सिंचाई: बुवाई के 15-20 दिन बाद
- फूल बनने और बॉल बनने के समय: यह समय सबसे महत्वपूर्ण होता है। हर 12-15 दिन में सिंचाई करें।
- अधिक पानी से बचें: ज्यादा नमी से फसल पीली पड़ सकती है।
7. खरपतवार नियंत्रण
- पहले 45 दिन: खरपतवार नियंत्रण के लिए सबसे जरूरी समय होता है।
- निराई-गुड़ाई: हर 15-20 दिन में करें।
- रासायनिक नियंत्रण: पेन्डीमेथालीन या ग्लाइफोसेट का छिड़काव किया जा सकता है (विशेषज्ञ की सलाह पर)।
8. रोग व कीट नियंत्रण
मुख्य कीट:
- गुलाबी सुंडी
- सफेद मक्खी
- थ्रिप्स
रोकथाम के उपाय:
- ट्रैप (लाइट ट्रैप, फेरोमोन ट्रैप) लगाएं
- कीटनाशक (जैसे—स्पाइनोसैड, इमिडाक्लोप्रिड) का समय पर छिड़काव करें
- जैविक उपाय जैसे नीम का अर्क भी कारगर होता है
रोग:
- अंगमारी (बैक्टीरियल ब्लाइट)
- पत्तियों पर धब्बे
निवारण: रोग प्रतिरोधी बीज का चुनाव करें और खेत में उचित दूरी रखें।

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9. फसल की कटाई और भंडारण
- कटाई का समय: जब बॉल (cotton bolls) पूरी तरह से फट जाएं और रेशा सूखा और सफेद दिखे।
- एक से अधिक तुड़ाई: कपास की फसल को 3–4 बार में तोड़ा जाता है।
- भंडारण: सूखे और हवादार स्थान पर रेशा रखें, जिससे नमी या कीट नुकसान न पहुंचा सकें।
10. अतिरिक्त सुझाव
- कपास फसल को दलहनों या तिलहनों के साथ रोटेशन में बोएं।
- खेत में “बॉर्डर क्रॉपिंग” करें जैसे अरहर या मक्का ताकि कीटों का प्रभाव कम हो।
- सरकार द्वारा दी जा रही कपास बीमा योजना या सब्सिडी की जानकारी समय-समय पर लेते रहें।
निष्कर्ष
कपास की उन्नत खेती में सफलता पाने के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाना जरूरी है। बीज चयन से लेकर सिंचाई, खाद प्रबंधन और कीट नियंत्रण तक हर कदम पर सावधानी जरूरी है। यदि किसान नई तकनीकों और समय पर सलाह को अपनाएं, तो कपास से अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।