Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारंभ आज से, जानिए 12 दिनों की इस अद्भुत यात्रा की खास बातें, इतिहास और धार्मिक महत्व।
पुरी में रथ यात्रा का शुभारंभ
ओडिशा के पवित्र नगर पुरी में आज से श्री जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का आगाज़ हो रहा है। यह वार्षिक उत्सव पुरी के श्रीमंदिर से प्रारंभ होकर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचता है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ साल में एक बार अपनी बहन देवी सुभद्रा और भाई भगवान बलभद्र के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं, जिसे गुंडिचा मंदिर कहा जाता है।
12 दिन चलने वाला आस्था, परंपरा और भक्ति का आध्यात्मिक पर्व
इस भव्य यात्रा की अवधि कुल 12 दिन की होती है। इस वर्ष यात्रा 27 जून 2025 से प्रारंभ होकर 8 जुलाई 2025 को ‘नीलाद्रि विजय’ के दिन समाप्त होगी, जब भगवान पुनः श्रीमंदिर में लौटेंगे। इस पूरे आयोजन की तैयारियाँ महीनों पहले शुरू हो जाती हैं। इन 12 दिनों में अनेक धार्मिक अनुष्ठान, पारंपरिक विधियाँ और सांस्कृतिक आयोजन किए जाते हैं।
नबजौबन दर्शन और नेत्र उत्सव
रथ यात्रा से एक दिन पहले, हजारों श्रद्धालु मंदिर के सिंहद्वार पर एकत्र होकर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के नबजौबन दर्शन करते हैं। यह भगवान के कायाकल्प और स्वास्थ्य लाभ की प्रतीक परंपरा है, जो स्नान पूर्णिमा के बाद मूर्तियों को अलग स्थान (अनासर घर) में रखा जाता है। नेत्र उत्सव के दौरान उनकी आंखों को पुनः रंगा जाता है, और यह दिन मूर्तियों के “नेत्रोत्सव” के रूप में मनाया जाता है।

रथ यात्रा की पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथ स्कंद पुराण के अनुसार, देवी सुभद्रा ने एक बार नगर भ्रमण की इच्छा जताई थी। तब भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बिठाकर नगर दर्शन करवाया और गुंडिचा मंदिर, यानी अपनी मौसी के घर लेकर गए। तभी से यह परंपरा चलन में आई और आज यह उत्सव विश्वभर में प्रसिद्ध हो गया है।
तीनों रथों की खास बनावट और नाम
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के लिए विशेष रूप से तीन रथ बनाए जाते हैं। हर रथ की बनावट, आकार और नाम अलग होता है:
- भगवान जगन्नाथ का रथ:
- नाम: नंदीघोष
- ऊंचाई: 45 फीट
- पहिए: 16
- रस्सी का नाम: शंखचूड़ा नाड़ी
- भगवान बलभद्र का रथ:
- नाम: तालध्वज
- ऊंचाई: 43 फीट
- पहिए: 14
- रस्सी का नाम: बासुकी
- देवी सुभद्रा का रथ:
- नाम: दर्पदलन
- ऊंचाई: लगभग 42 फीट
- पहिए: 12
- रस्सी का नाम: स्वर्णचूड़ा नाड़ी
इन रस्सियों को छूना और रथ को खींचना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।
कौन कर सकता है रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त?
पुरी की रथ यात्रा की सबसे खास बात यह है कि इसमें धर्म, जाति या देश की कोई सीमा नहीं है। कोई भी श्रद्धालु, सच्चे भाव से, रथ की रस्सी को खींच सकता है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को मोक्ष की ओर अग्रसर होने का अवसर प्राप्त होता है।
हर कोई रथ को ज्यादा देर तक नहीं खींच सकता, ताकि अधिक से अधिक श्रद्धालुओं को यह अवसर मिल सके। यदि कोई श्रद्धालु रथ नहीं भी खींच पाए, तो भी इस यात्रा में शामिल होना ही हज़ार यज्ञों के समान पुण्यदायक माना गया है।
2025 की रथ यात्रा का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 27 जून को पड़ रही है। पंचांग के अनुसार, इस दिन सुबह 5:25 से 7:22 तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इसके साथ ही पुष्य नक्षत्र भी है। भगवान की रथ यात्रा शुभ अभिजीत मुहूर्त में, दोपहर 11:56 से 12:52 बजे के बीच प्रारंभ होगी।
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रथ यात्रा: आस्था का प्रतीक, संस्कृति का उत्सव
पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला, कारीगरी और आस्था का अद्भुत संगम है। इस पर्व में भाग लेना एक आध्यात्मिक अनुभव होता है, जिसे हर व्यक्ति जीवन में एक बार ज़रूर अनुभव करना चाहता है। यह यात्रा न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।
Jagannath Rath Yatra 2025
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का यह भव्य आयोजन, आस्था और परंपरा का अद्वितीय उदाहरण है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की इस यात्रा में शामिल होकर लाखों लोग आत्मिक शांति और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं। अगर आप भी इस वर्ष पुरी नहीं पहुंच सके, तो इस पर्व की जानकारी और उसके पीछे की भावनाओं को जानकर अपने मन को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर सकते हैं।
📌 Disclaimer:
यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक स्रोतों पर आधारित है। पाठकों से निवेदन है कि किसी भी आध्यात्मिक निर्णय से पहले स्वयं शोध करें या विशेषज्ञों की सलाह लें।