Artificial Rain in Delhi: राजधानी की जहरीली हवा को साफ करने के लिए दिल्ली सरकार अब मौसम से ‘खेलने’ की तैयारी में है। पहली बार यहां क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम वर्षा कराने की योजना पर काम हो रहा है। सवाल है – ये तकनीक कितनी असरदार है और इसके खतरे क्या हैं?
🌫️ क्यों जरूरी हो गई है दिल्ली में कृत्रिम बारिश?
हर साल ठंड शुरू होते ही दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है। पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म प्रदूषक सांसों के रास्ते शरीर में घुस जाते हैं और गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं। ऐसे में सरकार को हर साल ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) लागू करना पड़ता है।
इसी वायु संकट का समाधान निकालने के लिए अब क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी यानी कृत्रिम बारिश की योजना बनाई गई है।
🗓️ कब और कैसे होगा Artificial Rain का ट्रायल?
दिल्ली सरकार 4 जुलाई से 11 जुलाई के बीच कृत्रिम वर्षा का ट्रायल कर सकती है। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा के अनुसार, यह ट्रायल हवा में मौजूद प्रदूषकों को कम करने की दिशा में एक अहम प्रयास होगा।
💡 क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
क्लाउड सीडिंग में सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन को उन बादलों में डाला जाता है जिनमें नमी मौजूद होती है। यह रसायन छोटे जलकणों को एकत्रित कर बूंदों में बदल देता है, जिससे भारी होकर बारिश होती है।
ध्यान रहे: क्लाउड सीडिंग सिर्फ सक्रिय बादलों में ही संभव होती है, सूखे आसमान में नहीं।

🧪 कौन-कौन कर रहा है मदद?
इस परियोजना में IIT कानपुर और आईएमडी पुणे (भारत मौसम विभाग) मिलकर काम कर रहे हैं। IIT कानपुर इसके वैज्ञानिक पक्ष को संभाल रहा है, जबकि IMD मौसम की उपयुक्त स्थिति का विश्लेषण करता है।
🌍 दुनिया में कहां-कहां हो चुकी है कृत्रिम बारिश?
1. चीन:
सबसे बड़ी क्लाउड सीडिंग व्यवस्था। ओलंपिक, परेड, और सूखे में बारिश लाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
2. ऑस्ट्रेलिया:
1947 से जारी है। बर्फबारी बढ़ाने के लिए पहाड़ी इलाकों में उपयोग किया जाता है।
3. यूरोप (फ्रांस, जर्मनी):
ओलों को रोकने और फसलों की रक्षा के लिए क्लाउड सीडिंग की जाती है।
4. मलेशिया:
स्मॉग और हेज को हटाने के लिए शहरी इलाकों में कृत्रिम वर्षा कराई जाती है।
✅ कितना कारगर है यह उपाय?
विश्व मौसम संगठन (WMO) के अनुसार, क्लाउड सीडिंग से वर्षा की संभावना 0–20% तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन इसकी सफलता काफी हद तक मौसम और बादलों की स्थिति पर निर्भर करती है।
IIT कानपुर के प्रोफेसर मणिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, इससे दिल्ली को केवल कुछ दिनों की राहत मिल सकती है, स्थायी समाधान नहीं।

⚠️ क्या हैं इसके खतरे?
- सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों के कारण मृदा और जल स्रोत प्रदूषित हो सकते हैं।
- मौसम प्रणाली में छेड़छाड़ के कारण पड़ोसी क्षेत्रों के मौसम पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
- कुछ इलाकों में कृत्रिम बारिश कराने से दूसरे क्षेत्रों की प्राकृतिक वर्षा रुक सकती है।
🔍 Artificial Rain
दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश का प्रयोग होने जा रहा है। यह तकनीक प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए एक नई उम्मीद हो सकती है, लेकिन इसके पर्यावरणीय जोखिम और सीमाएं भी हैं।
👉 सवाल यही है कि क्या यह अस्थायी समाधान भविष्य में स्थायी नीति बन सकेगा? जवाब मिलेगा समय के साथ…